आयातित कोयला प्रयोग करने से बढ़ेगी बिजली उत्पादन की लागत


लखनऊ। ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने इम्पोर्टेड कोयला इस्तेमाल करने की विद्युत मंत्रालय द्वारा दी गई अनुमति के सन्दर्भ में चिंता जाहिर की है। इस संबंध में फेडरेशन की तरफ से केंद्रीय विद्युत मंत्री आर के सिंह को पत्र भेजा गया है।

फेडरेशन का कहना है कि कोयला संकट के दौर में केन्द्र सरकार द्वारा 15 प्रतिशत आयातित कोयला प्रयोग करने की अनुमति देने से बिजली उत्पादन की लागत में कम से कम 01.15 रुपये प्रति यूनिट की बढ़ोतरी होगी। फेडरेशन ने निजी घरानों का फर्जीवाड़ा रोकने हेतु मांग की है कि निजी बिजली उत्पादन घरों का सीएजी ऑडिट व एनर्जी ऑडिट किया जाये। इससे पता चल सके कि वास्तव में कितना आयातित कोयला ब्लेंड किया गया।

ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने केंद्रीय विद्युत मंत्री को प्रेषित पत्र में आंकड़े देकर बताया है कि दक्षिण अफ्रीका से आने वाले 5500 कैलोरिफिक वैल्यू के आयातित कोयले की कीमत 22205 रुपये प्रति टन है। इण्डोनेशिया से आयातित 5000 कैलोरिफिक वैल्यू के कोयले की कीमत 21720 रुपये प्रति टन है। वहीं 4000 कैलोरिफिक वैल्यू के भारतीय कोयले की कीमत 5150 रुपये प्रति टन है जो आयातित कोयले की कीमत के एक चौथाई से भी कम है। इससे स्पष्ट है कि आयातित कोयले को अनुमति देने से बिजली उत्पादन की लागत तो बढ़ेगी ही, निजी घरानों को भारी फर्जीवाड़ा करने का मौका मिलेगा। क्योंकि वे सीएजी ऑडिट व एनर्जी ऑडिट के दायरे में नहीं आते हैं।

आयातित कोयले के नाम पर चल रहे अदानी व कई अन्य निजी घरानों के फर्जीवाड़े की डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेन्स पहले ही जांच कर रहा है। ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन के पत्र में गणना करके बताया गया है कि भारतीय कोयला प्रयोग करने पर एक यूनिट बिजली बनाने में लगभग 03.22 रुपये का कोयला खर्च आता है। जबकि 15 प्रतिशत आयातित कोयला ब्लेन्ड करने पर कोयले का खर्च बढ़कर 04.37 रुपये प्रति यूनिट आएगा। इस प्रकार प्रति यूनिट बिजली उत्पादन में कोयले की कीमत में ही कम से कम 01.15 रुपये की बढ़ोतरी हो जाएगी। इससे पहले ही भारी वित्तीय संकट झेल रही बिजली वितरण कम्पनियां इस मार से और अधिक बदहाली में चली जाएंगी।

ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन ने यह भी मांग की है कि कोल इण्डिया को निर्देश दिए जाएं कि बिजली घरों को पूर्वानुमानित मांग के अनुसार समय से कोयला मिल सके और भविष्य में 2021 जैसा संकट न उत्पन्न हो।

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