एक ऐसा नेता जो 24 साल की उम्र में विधायक बना, मायावती से पहले और मुलायम के साथ विधानसभा पहुंचा था मुज़फ्फरनगर का एक युवक

सन 1980 में 40 साल पहले महज 24 साल की उम्र में पहली बार मुज़फ्फरनगर की जानसठ विधानसभा से विधायक बने, सन 1985 में जानसठ से दोबारा विधायक बने और 29 साल की उम्र में कांग्रेस सरकार में मंत्री बने। ऐसे मंत्री जो रात के 2-3 बजे तक भी काम करते थे, डाक बंगले पर बैठकर फरियादियो की फरियाद सुनते थे, हजारो की भीड़ में सबकी सुनते और अधिकारियों को वही मौजूद रखकर तुरंत निस्तारण कराते थे। उनके एक शिष्य ने बताया कि एक बार ज्यादा काम का बोझ होने के कारण उस समय के उनके पीए आरिफ मोहम्मद चकराकर नीचे गिर पड़े थे। तीसरी बार भी जानसठ विधानसभा से ही विधायक चुने गए और विपक्ष के विधायक बनकर मज़लूमो, और गरीबो की आवाज़ बुलंद की मगर मायावती से पहले और मुलायम सिंह यादव के साथ विधानसभा पहुंचने वाले दीपक कुमार ने ये साबित कर दिखाया था कि जो खेलने कूदने की उम्र होती है, उस उम्र में भी इंसान क्या कुछ कर नही सकता। उनकी काबिलियत और कम उम्र में तरक्की को देखकर तत्कालीन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी उन्हें बेहद पसंद करते थे। मुलायम सिंह यादव की रिक्वेस्ट पर ही उन्होंने सपा के सिम्बल से भी चुनाव लड़ा था। जब एक प्रोग्राम में दीपक कुमार नही पहुंचे थे तो मुलायम सिंह यादव ने उन्हें फोन करके बुलाया था और अपने साथ लेकर गए थे, मगर तीन बार लगातार जीतने के बाद बहुत कम वोटो से दूसरी विधानसभा से कई बार चुनाव हार जाने के बाद दीपक कुमार का मनोबल गिरता चला गया और उनका जज़्बा, हिम्मत, हौशला भी धीरे धीरे कम होने लगा। किसी वक्त में हजारों की भीड़ एक इशारे पर मौजूद रहती थी, मगर मायावती के राजनीति में आ जाने के बाद दलित समाज भी बसपा की तरफ खिंचने लगा। दीपक कुमार को कांग्रेस में रूचि व लगाव ने वही थामे रखा। उनके साथ के विधायक मुख्यमंत्री और केंद्र में मिनिस्टर बन गए। कई उनके शिष्यो ने भी ऊचाइयों को छू लिया। बेबाक तरीके से पीड़ितों की आवाज़ उठाने वाले ऐसे नेता को एक बार फिर विधानसभा पहुंचाना जरूरी हैं। दीपक कुमार एक सादगी पसंद नेता हैं जो अन्य नेताओं की तरह नही दिखते, उनका स्वभाव, आदत आम लोगो की तरह है। उनके आवास पर कोई आ जाये तो चाय भी स्वयं ले आते है। उन्हें देखकर ऐसा बिल्कुल नही दिखता कि उनका मुकाम कितना ऊँचा हैं। आज भी कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार हैं, मगर सादगी के वो बादशाह ही कहे जाएंगे।

फरमान अब्बासी लेखक

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