ऐसा नहीं कि आवाज़ उठती नहीं
बस कुछ लोगों कि नज़रें झुकती नहीं,
चारों तरफ चीख है पुकार है
मगर बेशर्मों को कुर्सी से प्यार है,
वो दर्द अपना लेकर किसके पास जाए,
इस दौर में सच कि ज़बान खुलती नहीं,
कहने वालों ने कहा भी बहुत है
मगर झूठ के आगे सच कि चलती नहीं,
लाचारी और बेबसी से पार पाना है
मौत भी जल्दी से हर किसी को मिलती नहीं,
मैंने तो अपनी बात कह दी है
मगर मगरूर ये सत्ता किसी कि सुनती ही नहीं,
और भी सच है झूठ बनाने के लिए
उनपर तुम्हारी आंख क्यों खुलती नहीं!!
-सलीम राव