मुज़फ्फरनगर: परसो का वाक़या बताता हूं। जिसे देखकर आंखों को बहुत ठंडक मिली। चार दिन की बीमारी और घर मे ही कैद रहने के बाद घर से बाहर निकला।मिनी ट्रक में कावड़िये तेज़ म्यूजिक के साथ कावड़ यात्रा निकाल रहे थे। देखा कि अचानक कावड़ियों का काफिला रुक जाता है। म्यूजिक बिल्कुल बंद और कावड़िये सड़क पर ही एक किनारे बैठ जाते हैं। कांवड़ यात्रा पूरी तरह रुक गयी। उस वक़्त समझ मे नही आया कि यात्रा क्यों रुक गयी। करीब 10 से 15 मिनट बाद कावड़ियों के माइक से ही आवाज़ आयी कि नमाज़ हो गयी है अब चलने के लिए खड़े हो जाइए।
दरअसल जहां कावड़ियों का काफिला था वहां से सौ- दो सौ मीटर दूरी पर एक मस्जिद थी जहां से अज़ान होते वक़्त ना सिर्फ कांवड़ियों ने म्यूजिक बंद किया बल्कि नमाज़ पूरी होने तक यात्रा रोके रखी। नमाज़ पूरी होने के बाद फिर कांवड़ यात्रा शुरू हो गयी। अच्छी बात ये थी कि ये सब पुलिस प्रशासन की व्यवस्था का हिस्सा नही था बल्कि भोले भक्तों ने खुद अपने विवेक से किया। ये नज़ारा शायद आजीवन याद रहे। मन में ख्याल आया कि अगर यूं ही हम सब आपस में एक दूसरे के मज़हब की इज़्ज़त करेंं तो साम्प्रदायिक ताकते घुटन से मर जाएंगी।
रहमान गौर कि फेसबुक वॉल से!