खून से सनी हुई है नीव ये समाज की,

खून से सनी हुई है नीव ये समाज की,
मिसाल है कहानियाँ अराधना,नमाज़ की

रक्त से बन्धु के गुलाल समझ खेलिए,
इंसान बन इंसान की वासना को झैलिए,

इसा को समझे इशान को समझना क्या,
हो हिन्दु तो मुस्लमान को समझना क्या,

धर्म के नाम पर इंसान को नौच नौच खाईए,
वाचाल मुक बन तमाशा देखते ही जाईए,

स्वार्थपुर्ति हेतु औरो की पगडियाँ उछालिए,
स्त्री पराई को कदिचित भगिनी ना मानिए,

अपनी अपनी सौचिए ना पीर पराई पुछिए,
पत्थर बनकर आप महज़ पत्थरो को पुजिए,

मेरा अलाह् ,मेरा ईश्वर,मेरा रब,मेरा भगवान,
सभी कुछ तो मेरा है इंसान का नही इंसान,

विकार की नही यहाँ आवश्यकता विचार की,
धिक्कार की यहाँ आवश्यकता है प्यार की,

राह देखता है तमस सुबह हो की आज की,
मिसाल है कहानियाँ अराधना,नमाज़ की।.

Prachi

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