गोबर से बने हर्बल दीये से घर-आंगन रोशन होंगे।

मीरजापुर। दिवाली पर घरों को रोशन करने के लिए जलाए जाने वाले मिट्टी के दीयों के स्थान पर इस बार गोबर से बने हर्बल दीये से घर-आंगन रोशन होंगे। रंग-बिरंगे गोबर के दीये बच्चों के भी आकर्षण का केंद्र बनेंगे और दिवाली की रौनक बढ़ाएंगे। धार्मिक रूप से पवित्र माने जाने वाले गाय के गोबर से बने हर्बल दीपक अब बिकने लगे हैं। इससे कुम्हारों को अच्छी आमदनी भी होने लगी है। गोबर से बनाए गए दीपक से निकलने वाली रोशनी उनके जीवन में समृद्धि का उजाला लाएगी।

हिदू रीति-रिवाज में गाय के गोबर की पूजा होती है। इसका महत्व उस समय और बढ़ जाता है, जब दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी और गोवर्धन की पूजा होती है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र राजगढ़ ब्लाक के भावां, भवानीपुर, दुबेपुर, गोरथरा, नुनौटी व पतार गांव के दर्जनों कुम्हार गाय के गोबर से सुंदर हर्बल दीये बनाने में जुटे हैं।

कुम्हारों ने बताया कि चुनार में एक कार्यक्रम के दौरान गोबर से दीये बनाने का हुनर सीखने को मिला। जब से गाय के गोबर से दीपक बनाने का तरीका पता चला, तभी से दीपक बनाना शुरू कर दिया।

गाय के गोबर से बने उत्पाद जहां एक ओर शुद्ध और शुभ माने जाते हैं। वहीं इनसे गौशालाएं भी आत्मनिर्भर बनेंगी और गौ माता किसी को बोझ नहीं लगेगी। इस कार्य से नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। गाय के गोबर से बने दीपक पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रहे हैं।

आईआईटी का छात्र व बीए की छात्रा भी बना रही हर्बल दीपक

भावां केहुन्नर प्रजापति, रामपति, भोला, भवानीपुर के शिव कुमार प्रजापति, संतलाल व पतार गांव के लक्ष्मण प्रजापति, गोरथरा के रमेश प्रजापति ने बताया कि 70 फीसदी गोबर और 30 फीसदी चिकनी मिट्टी के इस्तेमाल से दीपक तैयार किए जाते हैं। यह दीये बिल्कुल प्राकृतिक हैं। भावां गांव निवासी बीए तृतीय वर्ष की छात्रा ममता प्रजापति व उसके चचेरे भाई आईआईटी छात्र महेश प्रजापति भी इस समय हर्बल दीपक बनाने में जुटे हैं। ममता के पिता रामपति प्रजापति और महेश के पिता हुनर प्रजापति भी मिट्टी के कारीगर हैं।

पेशे को आधुनिक बनाने में जुटे भाई-बहन

ममता और महेश का कहना है कि आज के दौर में सरकारी नौकरी मिलना बड़ा मुश्किल है। तैयारी के लिए हमारे पास पैसा नहीं है, इसलिए अपने पेशे को ही आधुनिक बनाने का फैसला लिया है जिससे हम आर्थिक रूप से आगे बढ़ सके। फिलहाल दोनों ने 25 हजार हर्बल दीपक बना चुके हैं। इसमें से12 हजार दीपक बिक भी चुके हैं।

बनी रहेगी पर्यावरण की शुद्धता, आत्मनिर्भर भारत मिलेगा बढ़ावा

गोल्हनपुर स्थित अस्थाई गो आश्रय केंद्र के संरक्षक व प्रबंधक ग्राम प्रधान इंश पटेल ने कहा कि गोबर से बने सुंदर हर्बल दीपक पर्यावरण के अनुकूल हैं। इनके जलाने से पर्यावरण में मौजूद दूषित कण समाप्त हो जाते हैं। इससे आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा मिलेगा।

इन दीयों से नहीं होता प्रदूषण

मिट्टी के दीये पक जाने पर ठोस हो जाते हैं। यह मिट्टी में मिलने में समय लगता है, लेकिन गोबर से बनी सामग्री पूरी तरह से इको फ्रेंडली है, जिससे प्रदूषण नहीं फैलाता। मिट्टी में तत्काल मिल जाने से खाद का भी काम करता है।

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