ज़ाइरा वसीम अब टीवी न्यूज चैनल्स की सुर्खियां बनी है। अलग अलग चेनल्स में विभिन्न हेडलाइन्स देखी जा सकती है। डर गई ज़ाइरा (हार गई ज़ाइरा) बस ज़ाइरा ही ज़ाइरा छाया है। बहुत लोगो की अलग अलग प्रतिकिर्या भी देखी जा रही है, न्यूज़ चेनल्स का दलाल मौलाना साजिद रशीदी जहां ज़ाइरा के विचार को महज एक ढोंग बता रहा है तो वही न्यूज़ चेनल्स की आपाये भी छाती पीटकर मातम बनाती नज़र आ रही है। ये जब है तब यही आपाये तीन तलाक का विरोध करने वाली कुछ नाम मात्र मुस्लिम महिलाओं का समर्थन भी उनके लोकतांत्रिक अधिकार की दुहाई देकर करती है। पूरा पूरा दिन डिबेट कराकर उनके इंसाफ की मांग करती है। आज एक मुस्लिम लड़की अपने मज़हब के सिंद्धान्तों पर चलने का प्रयास कर रही है तो उसके लिए भी रोड़ा बना जा रहा है। मुस्लिम महिलाओं के सम्मान की बात करने वाली मीडिया आज एक मुस्लिम लड़की को रुसवा व उसका विरोध कर रही है। जब देश में सभी स्वतंत्र है तो फिर ज़ाइरा वसीम की ज़िंदगी मे दखल क्यो? जिस समय उसने बॉलीवुड जॉइन किया था, तब भी कोई इस्लाम के मानने वाला उसके रास्ते मे रोड़ा नही बना था। उसने फ़िल्म इंड्रस्ट्री में एंट्री भी अपनी मर्जी से की और निकल भी अपनी ही मर्जी से रही है तो फिर इन हेडलाइंस का क्या मतलब? डर गई, या डरा दिया। मुझे ऐसा लगता है ज़ाइरा भले ही डरी हुई न हो मगर देश की मीडिया सौ फीसदी डरपोक नज़र आती है, मुरादाबाद में पत्रकारों को अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में जिलाधिकारी बन्द करा देते है, महिला वन अधिकारी को भीड़ बेरहमी से मारती है। धार्मिक नारो का सहारा लेकर लोगो को मौत के घाट उतारा जा रहा है। भाजपा विधायक का बेटा सीएमओ को बेट से पीटता है। गौशाला में गाय भूख और गर्मी से तड़प रही है। योगिराज में बदमाश दारोगा को गोली मारकर पेशी पर ले जा रहे कैदी को छुड़ाकर ले जाते है, लेकिन मीडिया ज़ाइरा ज़ाइरा चिल्ला रहा है क्योंकि उसमें कही न कही मुस्लिम धर्म की बात आती है, और मुस्लिम टॉपिक पर ही मीडिया को डिबेट व हायतौबा पसन्द आती है, क्योकि इसके अलावा चारा नही है, कुछ अलग दिखाएंगे तो नौकरी से जायेगे। ज़ाइरा नई जिंदगी की शुरुआत करने पर मैं तुम्हे मुबारकबाद देता हूँ। किसी की मत सुनो, दिल की सुनो, आगे बढ़ो, क्योकि देश का संविधान तुम्हे तुम्हारी मर्जी से जीने का अधिकार देता है। जब 18 साल की होने पर लड़की को कानून उसकी मर्जी से शादी तक करने की इजाजत तक दे देता है, चाहे उसके बाप की नाराजगी ही क्यो न हो? और फिर भी कोई उफ्फ तक नही करता, तो फिर ज़ाइरा तो सिर्फ अपनी मर्जी से अपने मज़हब पर चलना चाहती है। उसके लिए लोकतांत्रिक देश मे इतनी निंदा क्यो?
Farman Abbasi Writer✍🏼