दारुल उलूम से जारी हुए फतवे में मुस्लिम समुदाय में शादी की तारीख भेजने के लिए लाल खत की रस्म को गलत बताया है साथ ही मुफ्तियों का कहना है कि, यह रस्म गैर मुस्लिमों से आई है और इसलिए इस रस्म को करना और इसमें शामिल होना जायज नहीं है।
साथ ही मुफ्तियों ने मामा द्वारा दुल्हन को गोद में उठाकर गाड़ी या डोली में बिठाने की रस्म को भी छोड़ देने की नसीहत दी है।
आपको बता दें, दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से एक शख्स ने लिखित में मुफ्तियों से तीन सवाल पूछे थे।
इन तीन सवालों में शादी की तारीख बताने के लिए “लाल खत का इस्तेमाल करने”, महिलाओं द्वारा हाथ या “पांव की अंगुलियों में पहने जाने वाले छल्ले और चुटकियों” तथा “मामा द्वारा दुल्हन (भांजी) को गोद में उठाकर गाड़ी या डोली में बिठाने” को लेकर शरई(इस्लामी) राय मांगी थी।
इन तीनों सवालों के जवाब पर फतवा विभाग के मुफ्तियों की खंडपीठ ने जवाब में कहा कि, शादी में अनावश्यक रस्मों की तरह लाल खत भेजने की रस्म गैर मुस्लिमों से आई है और इस रस्म को करना और इसमें शामिल होना जायज नहीं है।
इसलिए इसे पूरी तरह से छोड़ देना चाहिए, साथ ही मुफ्तियों ने कहा कि, इस्लामी शादी, बहिश्ती जेवर, इस्लामुर्रसूम, इल्मुल निकाह, फतावा महमूदिया, किफायतुल मुफ्ती आदि धार्मिक पुस्तकों में इस रस्म की बुराइयों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है लिहाजा शादी की तारीख की इत्तेला (सूचना) देने के लिए सादा कागज, लिफाफा, पोस्टकार्ड इस्तेमाल किया जा सकता है, या फिर फोन पर बातचीत कर तारीख तय की जानी चाहिए।
वहीँ दूसरे सवाल पर मुफ्तियों ने कहा कि, भांजी के लिए मामा महरम है, लेकिन नौजवान भांजी को गोद में उठाकर ले जाना बेशर्मी होती है। यदि दोनों में से किसी एक को शहवत(बुरे काम का ख्याल या काम वासना) हो गई तो हुरमत मुसाहिरत (पाक रिश्तों का खतरे में पड़ने) का भी खतरा रहता है।
जिस कारण बहुत से रिश्ते हराम हो जाते हैं। इसलिए इस जटिल रस्म को भी छोड़ देना चाहिए, बल्कि बेहतर यह है कि, दुल्हन खुद चलकर गाड़ी में जाए।
हो सके तो, मां या बहन पकड़कर उसे गाड़ी में बिठा दें, जबकि तीसरे सवाल के जवाब में मुफ्तियों ने कहा कि, अगर चुटकी या छल्लों पर किसी प्रकार की मूर्ति नहीं बनी हुई हो तो, वह इसे पहन सकती हैं क्योंकि महिलाओं का जेवर पहनना जायज है।