दिल्ली: आजकल घुटने में दर्द की समस्या आमबात हो गई है. जाने-अंजाने लगभग हर घर में घुटने की समस्या से जुझने वाले लोग होते ही हैं. जिसमें सबसे ज्यादा कारगर है नी-रिप्लेसमेंट. हर वर्ष पूरे विश्व में लगभग 65,00,00 लोग अपना घुटना बदलवाते हैं. वैसे, घुटना बदलवाने की उम्र 65 से 70 की उम्र उपयुक्त मानी गई है. लेकिन यह व्यक्तिगत तौर पर भिन्न भी हो सकता है. पी डी हिंदुजा हास्पिटल के हेड आर्थोपेडिक सर्जन डा.संजय अग्रवाला के अनुसार दरअसल, घुटने के प्रत्यारोपण के समय घुटने में एक 4-6 से.मी. का चीरा लगाया जाता है. फिर विकारग्रस्त भाग को हटाकर उसके स्थान पर ये नए धातु जिन्हें प्रोस्थेसिस के नाम से जाना जाता है, को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इस प्रोस्थेसिस को हड्डियों से सटाकर लगाया जाता है. ये प्रोस्थेसिस कोबाल्ट क्रोम, टाइटेनियम और पोलिथिलीन की मदद से निर्मित किए जाते हंै. फिर घुटने की त्वचा को सिलकर बंद कर दिया जाता है.
डा अग्रवाला का कहना है कि इस प्रक्रिया के दौरान मरीज को ऐनीस्थिसिया दिया जाता है. मरीज को अतिरिक्त रक्त चढ़ाने की भी आवश्यकता होती है. ऑपरेशन के बाद मरीज को लगभग 5-7 दिन तक हास्पिटल में रुकना पड़ता है. ऑपरेशन के एक दो दिनों के बाद घुटने पर पानी आदि नहीं पडऩा चाहिए जब तक कि वह घाव सूख न जाए. सर्जरी के बाद चार से छ: सप्ताह के बाद पीडि़त धीरे-धीरे अपनी नियमित दिनचर्या को अपना सकता है. ऑपरेशन के बाद व्यायाम करने व आयरन से भरपूर भोजन करने से पीडि़त को ठीक होने में मदद मिलती है. आपरेशन के छ: सप्ताह के बाद पीडि़त गाड़ी चलाने में समर्थ हो जाते हैं.
डा अग्रवाला का कहना है कि ऑपरेशन के बाद आप को निम्रलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए- बहुत भारी कसरत, जल्दी-जल्दी सीढिय़ां चढऩा या फिर भारी वस्तु उठाने से हिचकिचाएं, अपने वजन को नियंत्रण में ही रखें, घुटनों के बल पर न बैठैं, बहुत नीची कुर्सी व जमीन पर बैठने को नजरअंदाज करें, कोई भी नया व्यायाम शुरू करने से पहले अपने डाक्टर से सलाह लें. जागिंग ऐरोबिक्स जैसे व्यायाम को करने से बचें. डा.संजय अग्रवाला का यह मानना है कि घुटना प्रत्यारोपण के आने से उन लोगों के जीवन में बेहद बदलाव आया है, जो अपने घुटनों को मोडऩे में असमर्थ थे. अब इन लोगों के लिए सभी प्रकार की संभावनाएं जैसे चौकड़ी मारकर बैठना व पूजा करना, गोल्फ खेलना, भारतीय स्टाइल के शौचालयों का इस्तेमाल करना आसान हो जाता है. घुटनों में दर्द की बीमारी एक परम्परागत बीमारी होती है.