नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी ने करीब दो महीने बाद एक बार फिर लोगों से अपने मन की बात कही। उन्होंने मन की बात की शुरूआत करते हुए कहा कि इसके कारण में इस कार्यक्रम को नहीं आपको मिस कर रहा था,एक खालीपन महसूस कर रहा था।’ उन्होंने कहा कि कई सारे संदेश पिछले कुछ महीनों में आए। जिसमें लोगों ने कहा कि वे मन की बात को मिस कर रहे हैं। जब मैं पढ़ता हूं, सुनता हूं, मुझे अच्छा लगता है। मैं अपनापन महसूस करता हूं. मुझे लगता है कि ये मेरी स्व में समष्टि की यात्रा है। ये मेरी अहम से वयम की यात्रा है। आईए जानते है पीएम मोदी के मन की 10 बड़ी बातें…
- मंदबुद्धि युवक की बेरहमी से की गई पिटाई
- सौरभ का अंदरूनी विरोध कहीं बन ना जाए हार का सबब
- तीनों कृषि कानून वापस लेगी मोदी सरकार, PM मोदी ने राष्ट के नाम संबोधन में की घोषणा
- दिवाली की रात खून की होली, गोली मारकर दोस्त को उतारा मौत के घाट
- आज फिर पेट्रोल के दाम मे इजाफा, डीजल का भाव स्थिर
- 2019 का लोकसभा चुनाव अब तक इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव था। इस प्रकार के चुनाव संपन्न कराने में बड़े स्तर पर संसाधनों और मानवशक्ति की आवश्यकता पड़ती है. लाखों शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों की दिन-रात मेहनत से चुनाव संभव हो पाया।
- लोकतंत्र के इस महायज्ञ को सफलतापूर्वक संपन्न कराने के लिए जहां अर्द्धसैनिक बलों के करीब 3 लाख सुरक्षाकर्मियों ने अपना दायित्व निभाया, वहीं अलग-अलग राज्यों के 20 लाख पुलिसकर्मियों ने भी, परिश्रम की पराकाष्ठा की, कड़ी मेहनत के फलस्वरूप इस बार पिछली बार से अधिक मतदान हुआ’। मतदान के लिए पूरे देश में करीब 10 लाख पोलिंग स्टेशन, 40 लाख से ज्यादा ईवीएम, 17 लाख से ज्यादा वीवीपैट मशीनों का इंतेज़ाम किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके, कि कोई मतदाता अपने मताधिकार से वंचित ना हो।
- आज संसद में 78 महिलाएं हैं जो कि रिकॉर्ड है। मैं चुनाव आयोग और हर उस शख्स को बधाई देता हूं जो चुनाव की प्रक्रिया से जुड़े और भारत के वोटरों को भी सलाम करता हूं।
- जब देश में आपातकाल लगाया गया तब उसका विरोध सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं रहा था, राजनेताओं एवं जेल की सलाखों तक सीमित नहीं रहा था, जन-जन के दिल में एक आक्रोश था ” “खोये हुए लोकतंत्र की एक तड़प थी। दिन-रात जब समय पर खाना खाते हैं तब भूख क्या होती है इसका पता नहीं होता है वैसे ही सामान्य जीवन में लोकतंत्र के अधिकारों का क्या मज़ा है वो तो तब पता चलता है जब कोई लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन लेता है”
- प्रेमचंद की लिखी एक-एक बात जीवंत हो उठती है. नशा, ईदगाह और पूस की रात ने मन की छू लिया. “नशा नाम की कहानी पढ़ते समय मेरा मन अपने-आप ही समाज में व्याप्त आर्थिक विषमताओं पर चला गया। मुझे अपनी युवावस्था के दिन याद आ गए कि कैसे इस विषय पर रात-रात भर बहस होती थी।
- “वहीँ दूसरी ओर ‘ईदगाह’, एक बालक की संवेदनशीलता, उसका अपनी दादी के लिए विशुद्ध प्रेम, छोटी उम्र में इतना परिपक्व भाव, ये सब दर्शाती है। 4-5 साल का हामिद जब मेले से चिमटा लेकर अपनी दादी के पास पहुँचता है तो सच मायने में, मानवीय संवेदना अपने चरम पर पहुँच जाती है”
- केरल के इडुक्की के घने जंगलों के बीच बसे एक गांव में अक्षरा लाइब्रेरी है। यहां के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक पी.के. मुरलीधरन और चाय की दुकान चलाने वाले पी.वी.चिन्नाथम्पी ने लाइब्रेरी के लिए अथक परिश्रम किया। एक समय ऐसा भी रहा, जब गट्ठर में भरकर और पीठ पर लादकर यहां पुस्तकें लाई गई। आज ये लाइब्ररी, आदिवासी बच्चों के साथ हर किसी को एक नई राह दिखा रही है।
- पानी का हमारी संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व है। ऋग्वेद के आपः सुक्तम् में पानी के बारे में कहा गया है। ‘वर्षा से जो पानी मिलता है, उसका सिर्फ आठ फीसदी बचाया जाता है। समय आ गया है कि इस समस्या का हल निकाला जाए। मुझे उम्मीद है कि जन भागीदारी से जल संकट का समाधान कर लेंगे। मैंने ग्राम प्रधानों को पत्र लिखा है कि वो पानी बचाने के लिए ग्राम सभा की बैठक करें और पानी पर विचार विमर्श करें। 22 जून को करोड़ों लोगों ने समर्थन किया।
- पूरे देश में जल संकट से निपटने का कोई एक फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता है। इसके लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में, अलग-अलग तरीके से, प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन सबका लक्ष्य एक ही है, और वह है पानी बचाना,जल संरक्षण। पंजाब में जलनिकासी काम किया जा रहा है। इस प्रयास से जलभराव की समस्या से छुटकारा मिलेगा। तेलंगाना के थिमाईपल्ली में टैंक के निर्माण से गांवों के लोगों की जिंदगी बदल रही है। राजस्थान के कबीरधाम में, खेतों में बनाए गए छोटे तालाबों से एक बड़ा बदलाव आया है।
- बिरसा मुंडा की धरती, जहाँ प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहना संस्कृति का हिस्सा है वहाँ के लोग, एक बार फिर जल संरक्षण के लिए अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। सभी ग्राम प्रधानों एवं सरपंचों को उनकी इस सक्रियता के लिए उन्हें शुभकामनायें। देशभर में ऐसे कई सरपंच हैं, जिन्होंने जल संरक्षण का बीड़ा उठा लिया है। ऐसा लग रहा है कि गांव के लोग, अब अपने गांव में, जैसे जल मंदिर बनाने के स्पर्धा में जुट गए हैं। सामूहिक प्रयास से बड़े सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।