नई दिल्ली : बुढ़ापा आते ही शरीर के हाव-भाव भी बदल जाते हैं और शरीर के अंग बेवफाई करते दिखाई देते हैं। हालांकि बुढ़ापे को आप रोक तो नहीं सकते लेकिन अपने सही लाइफ स्टाइल के साथ आप अपने ओर आते हुए बुढ़ापे की गति को जरूर कम कर सकते हैं। बढ़ती उम्र के साथ हमारी हाइट घटने लगती है. 40 वर्ष की उम्र के बाद प्रत्येक 10 साल में लोग एक सें.मी. हाइट खोने लगते हैं। लगभग 70 वर्ष होने के बाद यह हाइट तेजी से घटने लगती है। इसका एक बड़ा कारण है हमारे गलत पोस्चर। कई बार हम डाक्टरों व आसपास के लोगों को कहते सुनते हैं कि हमेशा बैठते उठते व चलते समय सही पोस्चर रखना चाहिए। रीढ़ की हड्डी में लगे छोटे-छोटे वक्र उसे पूर्ण बनाते हैं। यदि रीढ़ की हड्डी को एक साइड से देखा जाए तो उसका आकार एस के जैसे दिखता है। रीढ़ की हड्डी के इन साधारण वक्रों को लोर्डोसिस व काइफोसिस के नाम से जाना जाता है। हालांकि इन वक्रों को गलती से किसी बीमारी या विकार के रुप में नहीं लेना चाहिए।
आखिर पोस्चर होता है क्या। इसका अर्थ होता है कि रीढ़ की हड्डी के सभी वक्र एक साथ सही दिशा में एलाइन रहें ताकि शरीर का सारा वजन सभी वक्रों पर बराबरी के साथ पड़े व समान रुप में बंट जाए। ऐसे में अगर कोई सही पोस्चर में नहीं होता है तो रीढ़ की हड्डी के कुछ भागों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है खासकर कमर के निचले हिस्सें में। नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम हास्पिटल के वरिष्ठ न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन डा. सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार रीढ़ की हड्डी कभी भी सीधी नहीं होती है। इसके हर भाग में एक मुलायम वक्र अर्थात् हल्का मोड़ सा होता है। निचली ओर जाते हुए इन वक्रों की दिशा आल्टरनेट हो जाती है। इस प्रकार ये स्प्रिंगनुमा हो जाता है जो कि शाक अर्ब्जोप्शन करने में सक्षम हो जाता है. तो हम सोच ही सकते हैं कि यदि रीढ़ की हड्डी सीधी होती तो हमें कितनी दिक्कत हो सकती थी।
हमारी रीढ़ की हड्डी अक्सर रोजाना के कामों द्वारा पडने वाले बोझ व वजन को झेलती रहती है। ऐसे में कभी-कभी रीढ़ की हड्डी के बहुत से भाग विकारग्रस्त होने लगते हैं। बढ़ती उम्र के साथ रीढ़ की हड्डी में डीजनरेशन की समस्या उभरने लगती है।
डा.छाबड़ा के मुताबिक कुछ सौभाग्यशाली लोग अपने बुढ़ापे में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करते है,। लेकिन अधिकतर लोग निम्नलिखित लक्षणों का शिकार हो जाते हैं-हड्डियों के घनत्व में कमी, हल्की चोट से भी रीढ़ की हड्डी में फ्रेक्चर, कड़ापन, जोड़ों में समस्या जैसे चलने उठने बैठने व मोडने में दिक्कत, बहुत देर तक बैठने व खड़े होने के बाद दर्द, भारी वस्तुओं को उठाने में समस्या, शरीर का लचीलापन समाप्त होना. ओस्टियोपोरोसिस, डिस्क डीजनरेशन, स्पाइन ओस्टियोआर्थराइटिस, स्पाइनल स्टेनोसिस आदि।
डा.छाबड़ा का कहना है कि यदि उपचार की बात करें तो बहुत से उपचार उपलब्ध हैं। इनमें से मरीज की स्थिति को देखते हुए सर्वश्रेष्ठ उपचार का चुनाव विषेशज्ञ के द्वारा किया जाना चाहिए। दवाइयों से लेकर इंजेक्शन, सर्जरी आदि सब उपलब्ध है। जहां अन्य प्रक्रियाएं कोई कारगर प्रभाव नहीं दे पाती हैं तब सर्जरी की ओर रुख किया जाता है। अब तो बहुत सी शल्यरहित प्रक्रियाओं के द्वारा सर्जरी भी की जा रही है जिससे मरीज को असानी से अपनी समस्या से छुटकारा मिल जाता है और वह जल्द ही अपनी बेहतर दिनचर्या अपना सकता है।