मॉब लिंचिंग यानि भीड़ द्वारा किसी व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या कर देना, आज कल काफी चर्चाओं में है, बल्कि ऐसा कहे कि पिछले कुछ सालों से इसकी बाढ़ सी आ गई तो कोई गलत नही होगा। किसी निहत्ते, मज़लूम, बेबस अकेले इंसान को भीड़ बनकर मारते रहने से कोई मर्दानगी का अंदाज़ा नही होता बल्कि उन बुझदिलो के नामर्द होने का अहसास हो जाता है। एक शख्स को अपने प्रभावी क्षेत्र में सैकड़ो लोग बांधकर मारते है, मारपीट भी ऐसी कि देखकर रूह कांप जाए। फिर उससे ‘जय श्री राम’ जय हनुमान जैसे नारे लगाने का दबाव बनाया जाता है, दबाव में आकर वो बोल भी देता है। फिर भी उसे मारा जाता है। पूरी रात उसे मारते रहते है। आखिर इलाज न मिलने पर पुलिस कस्टडी में तबरेज़ मर ही जाता है। मेरा मानना ये है कि भीड़ बनकर मज़लूमो के साथ हैवानियत का नँगा नाच करने वाले इन दरिंदो को ऐलान कर चेता दिया जाए, कि किसी मैदान में इस तरह के सारे दरिंदे इकठ्ठे हो जाये और आमने सामने की टक्कर में जोर आजमाइश कर ले, यकीनन मर्द होने का मुकालता ही निकल जायेगा। जो देश मे जहर घोलने की साजिश हो रही है, इन्हें किसी एक धर्म का नही कहा जा सकता है। ये तो अधर्मी समाज के गंदे कीड़े है, जिनकी सफाई के बगैर देश स्वच्छ कतई नही हो सकता। स्वच्छता अभियान में कूड़े करकट से पहले ऐसे असामाजिक तत्वों की सफाई की जरूरत है, जो पवित्र नाम राम और हनुमान को मोहरा बनाकर इस्तेमाल कर रहे है। दरअसल इसमे कही न कही सरकार की चूक जरूर है। पुलिस और जेल प्रशासन भी तबरेज़ की हत्या में बराबर का भागीदार समझा जाना चाहिए, क्योकि उन्ही की साजिश के कारण उसकी मौत हुई। कई दिनों से देख रहा था, बड़ी संख्या में लोगो ने आवाज़ उठाना शुरु कर दिया है। मेरी कोशिश भी यही रहती थी, कि लोग अत्याचार के खिलाफ आवाज़ क्यो नही उठाते, पहली बार मुझे लगा था कि तबरेज़ पर लिखने की शायद जरूरत न पड़े लेकिन फिर भी खुद को रोक नही पाया।
Farman Abbasi Writer✍🏼