नई दिल्ली: दोषपूर्ण जीवन शैली और बैठने-बैठने के गलत तरीके के कारण गठिया समेत घुटने, कमर व कंधे जैसे तमाम जोड़ों के दर्द के मरीजों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। लोग तत्काल उपाय की सोचते हैं और दर्द निवारक दवाईयों का सेवन करने लगते हैं। यही कारण है कि टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाआंे में दर्द निवारक दवाईयों के विज्ञापनों की भरमार है।
शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल के रुमेटोलॉजिस्ट विभाग के एसोसिएट सलाहकार डॉ. अलोक कल्यानी का कहना है कि आमतौर पर कोई भी इस रोग का शिकार हो सकता है, लेकिन ऑस्टियो व इयूमेटाइड आर्थराइटिस के मरीज, अस्थि संबंधी हार्मोन विकृति वाले, दुर्घटना के शिकार लोग, मोटापा ग्रस्त, आराम परस्त, कंप्यूटर ऑपरेटर, दुपहिया चालक, खिलाड़ी, टाइप-ए व्यक्तित्व के लोग, क्लर्क, दुकानदार, घरेलू एवं अनियमित महावारी की शिकार महिलाएं और बहुमंजिली इमारतों के वाशिंदे खासतौर पर युवावस्था से ही किसी-न-किसी जोड़ के दर्द से पीड़ित हो जाते हैं।
आमतौर पर आर्थ्राइटिस के बारे में कई गलत धारणाएं प्रचलित हैं। आमतौर पर लोग पूरी जानकारी न होने के कारण शरीर में हड्डियों या मांसपेशियों में हर दर्द को आर्थ्राइटिस मान लेते हैं। जोडों में होने वाले शोध या जलन को आर्थ्राइटिस कहा जाता है और इससे शरीर के केवल जोड़ ही नहीं बल्कि कई अंग भी प्रभावित होते हैं। इससे शरीर के विभिन्न जोड़ों पर प्रभाव पड़ता है।
डॉ. अलोक कल्यानी के अनुसार टोटल नी रिप्लेसमेंट के क्षत्रे में हुई प्रगति के कारण अब यह तकनीक घुटने की आर्थराइटिस से पीड़ित रोगियों, विशेषकर वैसे रोगियों के लिए वरदान बन गई है जो इसके कारण गंभीर रूप से अक्षम हो गए हैं। ‘‘मिनिमली इनवैसिव तकनीकों की मदद से की जाने वाली सर्जरी और इसमें शामिल प्रौद्योगिकियों की बदौलत रोगियों को जीवन की बेहतर गुणवत्ता प्रदान करके उन्हें बेहतर रिकवरी करने का एक उन्नत मार्ग प्रशस्त हुआ है।