वर्ष 2020 को लोग एक आपदा और आफत वाले वर्ष के रूप में याद करेंगे लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि इस वर्ष ने पर्यावरण को लेकर चिंतित कई लोगों को एक विचार और सोचने की दिशा प्रदान की है। लॉक डाउन में जब चारों ओर से परेशान करने वाली खबरें सुनाई दें रही थी। ऐसे समय में पर्यावरण सुधार की खबर एक सकारात्मकता के तौर पर दिखी। आमतौर पर दिल्ली के आनंद विहार जैसे भीड़भाड़ वाली जगह का एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 के पार रहता है, जो कि स्वस्थ लोगों के लिए भी बेहद खतरनाक है लेकिन लॉक डाउन के समय यह 101 के आसपास दर्ज किया गया।
कोरोना से डरकर जिस प्रकार सभी लोग बाहरी वस्तुओं से दूरी बना रहे हैं, उसी प्रकार हमें अपने पर्यावरण को भी शुद्ध रखने के लिए जागरूक होना होगा। क्योंकि खराब पर्यावरण भी किसी महामारी से कम नहीं है। देश के पर्यावरण के सुधार के लिए हमें कुछ बिंदुओं पर विशेष ध्यान देना होगा;सिंगल यूज प्लास्टिक पर हो प्रभावशाली नीति सिंगल यूज प्लास्टिक जैसे कैरी बैग कोल्ड ड्रिंक तथा पानी की बोतल, गुटखे के पैकेट, थर्मोकोल की प्लेट, चिप्स आदि के पैकेट और भी अन्य कई वस्तुओं के पैकेट पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है।
हम इनका नियमित उपयोग करते हैं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन 26000 टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है, जिसमें से 10000 टन प्लास्टिक कचरा इकट्ठा होने से बचा रह जाता है। प्लास्टिक के इस भारी-भरकम कचरे को कम करने के लिए सबसे पहले आवश्यक है की इसके विकल्प को अपनाया जाए जैसे थर्मोकोल की प्लेट और पॉलिथीन के गिलास के स्थान पर सुपारी के पत्तों की प्लेट गिलास और चम्मच बनाए जा सकते हैं।
तथा पैकेजिंग के लिए कागज आदि का उपयोग किया जा सकता है। सुपारी देश के उत्तर पूर्वी व दक्षिणी राज्यों में भरपूर मात्रा में मौजूद है, कुछ व्यवसायियों ने प्लेट, गिलास, चम्मच, स्ट्रा बनाने की शुरुआत भी की है, बस आवश्यकता है तो सिर्फ पर्यावरण को लेकर जागरूकता की जिससे की इसे प्रभावी तौर पर किया जा सके। ऐसे ही अन्य और भी कई बेहतरीन विकल्प मौजूद हैं। जो पर्यावरण सुधार में संजीवनी का कार्य कर सकतें हैं।
जनभागीदारी और सहकारिता से आएगा सकारात्मक बदलाव
देश के पर्यावरण को शुद्ध बनाना किसी एक संस्था सरकार या व्यक्ति के बस की बात नहीं है, देश के प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति की जागरूकता का लाभ देश और समाज को अवश्य मिलना चाहिए, इसलिए इसे जनभागीदारी और सहकारिता से ही आगे बढाया जा सकता है। जो संस्थाएं, व्यक्ति इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जाना अति आवश्यक है। उदाहरण के लिए बेंगलुरू स्थित साहस जीरो वेस्ट तथा इकोग्रीन्यूनिट जैसी संस्थाएं इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।
“प्लास्टिक उद्योग से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध नही लगाया जा सकता क्योंकि छोटी-छोटी वस्तुओं से लेकर हवाई जहाज बनाने में भी प्लास्टिक का प्रयोग होता है। तथा यह उद्योग लगभग 40 से 50 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है। यदि इस प्रतिबंध लगाया गया तो देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा”
यह बात बिल्कुल सही है कि प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध नही लगाया जा सकता लेकिन सिंगल यूज प्लास्टिक (जो प्लास्टिक कचरे में अधिक मात्रा में पायी जाता है) को प्रतिबंधित किया जा सकता है तथा यहाँ से बेरोजगार हुए लोगों को आसानी से दूसरे वैकल्पिक उद्योग (जो हमनें प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर चुना है) में रोजगार प्रदान किया जा सकता है।
समझना होगा नीले और हरे डिब्बे का सही अर्थ
गीला कचरा हरे डिब्बे में और सूखा कचरा नीले डिब्बे में, यह तो हमें सरकार ने अपना संदेश सुना दिया लेकिन सबसे पहले हमें इसे अपनी आदत में लाना होगा, मैंने एक नगर पंचायत में कार्यरत कर्मचारियों से इस विषय पर बात की तो उन्होंने बताया कि कचरे को अलग करने का कार्य इतना कठिन होता है कि कई बार हमें मज़बूरी उसे ऐसे ही जलाना पड़ता है। हममें से कितने लोग इस नियम का पालन कर रहे हैं ? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कचरे के निस्तारण में सबसे बड़ी समस्या उसे अलग करने में ही होती है। यदि यही कार्य देश के प्रत्येक घर में होने लगे तो सच में आशा से कही अधिक अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में पर्यावरण में सुधार करना एक बड़ी चुनौती है। विकासशील देश होने के कारण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए दिन-प्रतिदिन नए नए उद्योग लगाए जातें हैं, जिसका नियमन करना अतिआवश्यक है। भारत के युवाओं में भी पर्यावरण की संवेदनशीलता विकसित होनी चाहिए, अन्यथा देश में पर्यावरण स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।