सलीम राव, दिल्ली: विश्व में आज के दिन यानी 1 मई को विश्व मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन दुनिया के मज़दूरों के लिए होता है जिसमें उनको याद किया जाता है। इसकी शुरूआत 1 मई 1886 से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों नें काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किस ने फेंका किसी का कोई पता नहीं। इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चला दी और सात मज़दूर मार दिए। वैसे मज़दूरों के काम के घंटों और अन्य ज़रूरतों को लेकर तमाम बहस और लडाई हुई हैं। बहुत देशों में मज़दूरों के लिए अलग अलग कानून भी बने हुए है कि कैसे और कितने घंटे उनको काम करना है। भारत में भी मज़दूरों के लिए अलग से कानून है। भारत और अन्य मुल्कों में मज़दूरों के 8 घंटे काम करने से संबंधित क़ानून लागू है।
क्यों मनाया जाता है मज़दूर दिवस
इन दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है। ये दिन पूरी तरह श्रमिकों को समर्पित है। इस दिन भारत समेत कई देशों में मजदूरों की उपलब्धियों को और देश के विकास में उनके योगदान को सलाम किया जाता है। ये दिन मजदूरों के सम्मान, उनकी एकता और उनके हक के समर्थन में मनाया जाता है।
भारत में मज़दूर दिवस की शुरुआत कैसे हुई
भारत में मज़दूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग झंडा मज़दूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। यह भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी जिसका नेतृत्व वामपंथी व सोशलिस्ट पार्टियां कर रही थीं। दुनियाभर में मज़दूर संगठित होकर अपने साथ हो रहे अत्याचारों व शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
लॉकडवान को लेकर मज़दूरों का हाल
आज हम बात करते हैं लॉकडवान को लेकर मज़दूरों की स्थिथि की कि क्या हालत इस समय दुनिया के मज़दूरों की हो गई है। कराना वायरस महामारी कर कारण दुनिया के अधिकांश देशों में लॉकडवान जिसके कारण तमाम मज़दूरी के कार्य बंद हैं। कार्य बंद होने के चलते मज़दूर घर बैठे हैं और रोज़ी रोटी के भी लाले पड़े हुए हैं। हाल ये है कि कुछ मदद सरकार ने की और कुछ लोगों की मदद के कारण ही आज मज़दूर ज़िंदा है।
लॉकडवान के कारण दुनिया में मज़दूरों का हाल
BBC हिंदी के अनुसार केन्या की एक महिला मज़दूर ने अपने बच्चों को बहलाने के लिए हंडिया में पत्थर पकाने शुरू किए जिससे कि उनको लगे कि खाना बनाया जा रहा है। यह एक विधवा मज़दूर महिला की कहानी है जिसको bbc ने कवर किया है । तो आप दुनिया में इस बात से मज़दूरों की हालात का अंदाज़ा फिल्हाल इस कराना वायरस महामारी के दौरान लगा सकते हैं।
मज़दूरों की इज़्ज़त और सम्मान हो
यही मकसद है दुनिया में मज़दूर दिवस मनाने का कि मज़दूरों का सम्मान हो उनको भी समाज में इज़्ज़त की नज़र से देखा जाए। मज़दूरों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाए। आम लोगों की तरह ही वो भी इंसान है एक ऐसे इंसान जो अपनी मेहनत मज़दूरी से अपना पेट भरते हैं।
भारत में मज़दूरों को स्थिति
भारत में मज़दूरों की मज़दूरी के बारे में बात की जाए तो यह एक बड़ी समस्या है। आज भी देश में कम मज़दूरी पर मज़दूरों से काम लिया जाता है। यह भी मज़दूरों का एक प्रकार से शोषण है। आज भी मजदूरों से फैक्ट्रियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर बहुत कम मजदूरी पकड़ा दी जाती है। जिससे मज़दूरों को अपने परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है।देश में ऐसे मजदूर हैं जो 1500-2000 मासिक मज़दूरी पर काम कर रहे हैं।बेशक इसको लेकर देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यूनतम मज़दूरी के नियम लागू किये हैं, लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है और इस दिशा में सरकारों द्वारा भी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।
आज भी लाखों लोग करते हैं बंधुआ मज़दूरी
आज भी हमारे देश में लाखों लोगों से बंधुआ मज़दूरी कराई जाती है। जब किसी व्यक्ति को बिना मज़दूरी या नाममात्र पारिश्रमिक के मज़दूरी करने के लिए बाध्य किया जाता है या ऐसी मज़दूरी कराई जाती है तो वह बंधुआ मज़दूरी कहलाती है। अगर देश में कहीं भी बंधुआ मज़दूरी कराई जाती है तो वह सीधे-सीधे बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 का उल्लंघन होगा। यह कानून भारत के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को रोकने के लिए बनाया गया था लेकिन आज भी जनसंख्या के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को नहीं रोका जा सका है। आज भी देश में कमजोर वर्गों का बंधुआ मजदूरी के जरिए शोषण किया जाता है जो कि संविधान के अनुच्छेद 23 का पूर्णतः उल्लंघन है। संविधान की इस धारा के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को शोषण और अन्याय के खिलाफ अधिकार दिया गया है। लेकिन आज भी देश में कुछ पैसों या नाम मात्र के गेहूं, चावल या अन्य खाने के सामन के लिए बंधुआ मज़दूरी कराई जाती है।
मज़दूरों के साथ होता है लैंगिग भेदभाव
आज भी देश में मज़दूरी में लैंगिक भेदभाव आम बात है। फैक्ट्रियों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है। बेशक महिला या पुरुष फैक्ट्रियों में समान काम कर रहे हों लेकिन बहुत सी जगह आज भी महिलाओं को समान कार्य हेतु समान वेतन नहीं दिया जाता है। फैक्ट्रियों में महिलाओं से उनकी क्षमता से अधिक कार्य कराया जाता है। आज भी देश की बहुत सारी फैक्ट्रियों में महिलाओं के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था नहीं है। महिलाओं से भी 10-12 घंटे तक काम कराया जाता है।
गरीबी के कारण छोटे बच्चे करते हैं मज़दूरी
आज भी देश में छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर बाल-श्रम हेतु मज़बूर हैं। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। जो बच्चे बाल मज़दूरी करते हैं, वो मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं और बाल मज़दूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बाधक होती है। बालश्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती है। जो कि संविधान के विरुद्ध है और मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुध्द अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
14 साल से कम उम्र का बच्चा नहीं करेगा मज़दूरी
संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जायेगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जायेगा। फैक्टरी कानून 1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गयी है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी इतने कड़े कानून होने के बाद भी बच्चों से होटलों, कारखानों, दुकानों इत्यादि में दिन-रात कार्य कराया जाता है और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जाता है जिससे मासूम बच्चों का बचपन पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुँच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिये समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे।