बानो कुदेसा कहती हैं कि समाज ने औरत की खूबसूरती और किरदार नापने के कई पैमाने सेट किए है। जिसमें से पहला औरत की शक्ल उनका जिस्म, औरत का लिबास, औरत की आवाज़, औरत द्वारा बनाई गई गोल रोटी, औरत के हाथ का खाना। उसकी मां, उसका बाप, उसके परिवार की आर्थिक स्थिति, उसकी तालीम, उसकी आस्था और ना जाने क्या क्या…?
कोई अच्छी से अच्छी और खूबसूरत से खूबसूरत लड़की इन पैमाने पर खड़ा उतर भी जाए लेकिन फिर भी औरत समाज की नज़र में अधूरी रह जाती है।
शक्ल, जिस्म, लिबास, आवाज़ और इन सब चीजों के इतर औरत इसलिए खूबसूरत होती है, क्योंकि औरत आवारों की तरह किसी लड़के का पीछा नहीं करती। औरत एक तरफा मुहब्बत में किसी के चेहरे पे तेजाब नहीं फेंकती वह एकतरफा मुहब्बत में किसी का कत्ल नहीं करती।
वह मज़हब के नाम पर भीड़ नहीं बनती…गौरक्षा के नाम पर किसी की हत्या नहीं करती…झूठी अफवाहों के बुनियाद पर किसी का लिंच नहीं करती हैं।
वह गली में आते-जाते लडको को stalk नहीं करती…वह लड़को का रेप कर उन्हें कभी ना खत्म होने वाला घाव नहीं देती हैं।
वह अपनी लड़ाई में कभी बाप-भाई कि गाली नहीं देती…अगर गुस्से में गालियां दे भी दे तो वह उसकी माज़रत करती है।
औरत जिस्मों के अंदर नहीं झांकती वह लोगों के दिल और रूह के अंदर झांकती है…वह कभी आपको यह कहती नहीं दिखेंगे कि फलां मुसलमान है उसे पाकिस्तान भेज दो… फलां हिन्दू है उसे बर्बाद कर दो।
और हां, औरत इसलिए भी खूबसूरत होती है क्योंकि वह जिसे दिल से अपना कहती है…मरते दम तक उसका साथ नहीं छोड़ती।
-नासिर रज़ा खान