शब-ए-बरात: वह रात जब होता है इंसानों की जिंदगी और मौत का फैसला

इस्लामी कैलेंडर के आठवें महीने (शाबान) की 15वें तारीख को शब-ए-बरात के नाम से मनाया जाता है। शब-ए-बरात दो शब्दों से मिलकर बना है। शब यानि रात और बारात का मतलब बरी होना है। मतलब इस शब-ए-बरात की रात मगफिरत की रात है।

इस रात सारे मुसलमान गुनाहों से तौबा करते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं।

इस रात मुसलमान साल भर में किए गए अपने एक्टिविटी का जायज़ा लेते हैं और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं।

अरब में यह रात लैलतुल बराह या लैलतुन निसफे मीन शाबान के नाम से जाना जाता है। दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल) में यह रात शब-ए-बरात से जाना जाता है।

शब-ए-बारात की रात पुरुष कब्रिस्तान जाकर दुनिया से रुखसत हो चुके लोगों की कब्रों पर फातिहा पढ़ते हैं, उनकी मगफिरत (गुनाहों की माफी) की दुआ करते हैं।

इस रात पूरे साल की तकदीर का फैसला भी किया जाता है। इस्लाम के तहत किस इंसान की मौत कब और कैसे होगी, इसका फैसला इसी रात कर दिया जाता है।

इस्लाम के जानकारों के मुताबिक, पैगंबर के समय में बनु कल्ब नाम का कबीला हुआ करता था।उनके पास लाखों की तादाद में भेड़ थीं। इसपर मिसाल देते हुए पैगंबर ने फरमाया था, बनु कल्ब के कबीले की भेड़ों के जिस्म पर जितने बाल हैं, शब-ए बारात के मौके पर अल्लाह अपने बंदों के उतने ही गुनाह माफ कर देते हैं।

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