सरहदों से अगर कोई इंसान बनता तो ना हिन्दू ना, मैं मुसलमान बनता

सरहदों से अगर कोई इंसान बनता
तो ना हिन्दू ना, मैं मुसलमान बनता

होते है बटवारे घर के आंगन में भी
तेरे हिस्से में माँ आई तो पिता मेरा होता

बदलती नहीं किश्मत आशियाने बदलने से
जहां बदलता है खुद को बदलने से

बाट लिया सब ये तेरा वो मेरा है
ज़मी आसमां के हिस्से भी करो ये किसके लिए छोड़ा है

चौतरफ़ा फैली है नफ़रतें, हवा भी मुफ़ीद नहीं
अब क्या तेरा, क्या मेरा होगा

छोड़ चले वो भी जहां को, जो सबल थे
तेरे लिए या मेरे लिए फिर क्या नफ़रतों का हल होगा

आ दिल के अंधेरे को मिटाकर, चिराग़े मोहब्बत जलाएं
ये मंज़र कल ना तेरा ना मेरा होगा।

-सलीम

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