लेखक सुधांशु कहते है कि जिंदगी की जद्दोजहद जब जवाब देने लगती है, तो इंसान को निराशा घेरने लगती है। जीवन से हताश होकर वह कुंठा और अवसाद का शिकार हो जाता है। आधुनिकता की चकाचौंध और आगे बढ़ने की दौड़ में अपनों एवं दूसरों से कमतर और पीछे रहने की कशमकश धीरे-धीरे ही सही हंसती खेलती जिंदगी पर भारी पडऩे लगती है। ऐसी मनोदशा से बाहर निकल पाना सबके बस की बात नहीं है और ये इतना आसान भी नहीं है।
पिछले एक साल में दिल्ली एनसीआर में अपनों की सामूहिक हत्या के बाद खुदकशी करने की एक के बाद एक कई घटनाएं हो चुकी है। अभी कल ही गाजियाबाद जिले के मसूरी थाना क्षेत्र के न्यूशताब्दीपुरम कॉलोनी निवासी प्रदीप ने पत्नी संगीता और तीन मासूम बेटियों मनस्वी, यशस्वी और ओजस्वी की हत्या करने के बाद खुदकशी कर ली। हत्या करने का तरीका इतना वीभत्स और क्रूरतम की जल्लाद भी एक बार सहम जाए। यहां बताना जरूरी है कि प्रदीप और संगीता ने करीब एक दशक पहले बड़े ही अरमानों से प्रेम विवाह किया था। मगर वक्त की मार और बेरोजगारी के दंश ने इस मोहब्बत भरी दास्तां की पांच असामयिक मौतों के साथ ऐसा दुखद अंत लिखा कि संवेदनाएं भी सहम जाएं।
कमोबेश, ऐसी ही घटना इसी महीने दो जुलाई को एनसीआर के ही शहर गुरुग्राम में भी हुई। जब एक साइंटिस्ट डॉ. श्रीप्रकाश सिंह ने अपनी पत्नी डॉ. सोना सिंह, बेटी अदिति और बेटे आदित्य की नृशंस हत्या करने के बाद खुद भी फांसी लगाकर जान दे दी। डॉ. श्रीप्रकाश ने इस हत्या में हथौड़े और मांस काटने वाले धारदार चाकू का प्रयोग किया। जिस पत्नी डॉ. सोना सिंह से उन्होंने किसी जमाने में प्रेम विवाह किया था। उसको जाने किस गुस्से में 19 बार चाकू से गोद डाला। जिस प्यारी बिटिया अदिति को इतने नाजों से पाला था, उसको भी पूरे 12 बार धारदार चाकू से घोंपकर छलनी कर दिया। बेटे को भी चाकू और हथौड़े से बेरहमी से मार डाला।
विडंबना है कि बाहर से आर्थिक रूप से बेहद समृद्ध, सुशिक्षित और सभ्य दिखने वाला यह परिवार भी अंदर से कमजोर और खोखला था। चार-चार प्ले स्कूल चलाने वाला, 30-40 लोगों को मंथली सैलरी देने वाला यह परिवार भी आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। डॉ. श्रीप्रकाश पिछले कुछ महीनों से बेरोजगार चल रहे थे। बचत के पैसों से रोजमर्रा के खर्चे चल रहे थे।

