सिकलसेल एनीमिया ऐसा क्राॅनिक डिसऑर्डर है, जिसे भारत में नज़रंदाज किया जा रहा है

आदिवासियों की बड़ी आबादी सिकलसेल एनीमिया से प्रभावित

नई दिल्ली : सिकल सेल एनीमिया (एससीए) वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला क्राॅनिक डिसऑर्डर  (चिर कालिक विकार) है। एक अनुमान के मुताबिक, 2025 तक इससे प्रभावित लोगों की संख्या के हिसाब से भारत दूसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। कई शोध में सामने आया है कि एससीए की मौजूदगी ज्यादातर सामाजिक-आर्थिक तौर पर कम जोर ऐसे समुदायों में हैं जिनके पास मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है।

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के हैड व एडिषनल डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ़  पीडियाट्रिक ही मैटोलाॅजी ऑन्कोलॉजी  ऐंडबोन मैरो ट्रांसप्लांट डाॅ. विकास दुआ ने बताया, ‘‘भारत में ’सिकलसेल एनीमिया’ के बारे में जागरूकता बहुत कम है। इस बीमारी के बारे में न तो बहुत कुछ लिखा गया है और ना ही बताया गया है। भारत में हर साल 9,000-11,000 बच्चे इसी बीमारी के साथ जन्म लेते हैं और जागरूकता के अभाव के कारण जन्म लेने के एक साल के भीतर उनकी मौत भी हो जाती है। सिकल सेल एनीमिया से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ काफी प्रभावित है लेकिन इस बीमारी के इलाज के लिए वहां ना तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और ना ही जागरूकता है। इसके बारे में जागरूकता और जांच के अभाव के कारण हम बेहद मूल्यवान जिंदगियां खो रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग इस बीमारी के बारे में जानकारी ही नहीं रखते हैं, तो उन्हें लाभ भी कैसे पहुंचाया जाए। इस पहल के जरिए हम लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक बनाना चाहेंगे और उनसे गुजारिश करेंगे कि इसका इलाज कराने में देरी नहीं करें।’’

सिकलसेल एनीमिया आनुवांशिकी तौर पर प्राप्त एनीमिया का एक प्रकार है। यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें पूरे शरीर में ऑक्सीजन  की उपयुक्त आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त संख्या में स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं नहीं होती हैं। सामान्य तौर पर लाल रक्त कोशिकाएं लचीली और गोल आकार की होती हैं जिससे वे रक्त धमनियों में आसानी से आवाजाही करने में सक्षम होती हैं। सिकल सेल एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाएं सख्त और चिप चिपी हो जाती हैं और उनका आकार भी बदल कर हसिया या अर्धचंद्रा कार हो जाता है। ये अनियमित आकार की लाल रक्त कोशिकाएं छोटी-छोटी रक्त धमनियों में फंस जाती हैं जिससे शरीर के विभिन्न अंगों में रक्त और ऑक्सीजन  की आपूर्ति धीमी हो सकती है या रूक सकती है।

डाॅ. दुआ ने बताया,’’सिकल सेल एनीमिया के क्षेत्र में एडवांस शोध हो रहे हैं और उनमें इसके इलाज व दवाओं के नए तरीके सामने आ रहे हैं। अब से कुछ साल पहले तक सिकलसेल एनीमिया का इलाज करना मुमकिन नहीं था और इसके कारण दुनिया भर में लाखों लोगों की जान जाती थी। लेकिन आज विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है और अब सिकल सेल एनीमिया बीमारी का इलाज करना संभव हो गया है। इस बीमारी के लिए अभी तक सिर्फ जो एक ही प्रभावी इलाज सामने आया है वह बोन मैरो ट्रांसप्लांट है जिसमें आपको ऐसे डोनर की आवश्यकता होती है, जिसका बोन मैरो आपके मैरो से पूरी तरह मैच हो। अगर आपके परिवार में कोई ऐसा शख्.स नही है जिससे आपकी मैरो पूरी तरह मैच हो तो देश और विदेश में कई लोग मैरो दान देने के लिए पंजीकरण कराते हैं। इसके अतिरिक्त आपके माता या पिता में से किसी एक का मैरो लेकर हाफ मैच ट्रांसप्लांट भी किया जा सकता है।

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट की जोनल डायरेक्टर डाॅ. ऋत गर्ग ने बताया, ’’हम मीडिया के जरिए सिकलसेल एनीमिया के हर संभावित रोगी तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं जिससे रोगियों व उनके परिवारो तक इसके बारे में सही जानकारी और सूचना पहुंचाई जा सके। जागरूकता की कमी के कारण कई एस सीए रोगियों की जान जा चुकी है और हम यहां इस जानलेवा बीमारी से लड़ने के लिए आपके साथ हैं। हमने हमारे हाॅस्पिटल में डाॅ. राहुल भार्गव और डाॅ. विकास दुआ के मार्ग दर्शन में सिकलसेल एनीमिया के कई रोगियों का सफलता पूर्वक इलाज किया है।’’

Related Articles

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
3,912FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles