गठबंधन प्रत्याशी सौरभ स्वरूप के लिए चुनोतियाँ कम नहीं, मुस्लिमों में पकड़ कम व नया चेहरा बन रहा मुद्दा, सौरभ के भाई का सपा को छोड़कर भाजपा का दामन थामना सही या गलत, हो रही ये चर्चाएं
मुजफ्फरनगर: सदर विधानसभा सीट पश्चिम उत्तर प्रदेश की हॉट सीट कही जाती है और इसकी सबसे बड़ी वज़ह है यहाँ पर चुनाव होने तक पल-पल बदलता माहौल। इसीलिए मतदान के आखिरी दिन तक भी यहां खूब गणित लगाया जाता है। गौरतलब यह है कि शहर का विधायक चुनने में आसपास के सभी गांव भी बड़ी भूमिका निभाते है।
2012 के परिसीमन के बाद से इस विधानसभा में तिगरी, बीबीपुर, शेरनगर, सहावली, बिलासपुर, कूकड़ा, भिक्की गांव भी मतदान करते हैं। क्योंकि मुज़फ्फरनगर शहर का एक बड़ा हिस्सा पुरकाजी विधानसभा में भी शामिल किया गया है।
मुज़फ्फरनगर की सदर सीट पर इस बार भाजपा से कपिल देव अग्रवाल, सपा से सौरभ स्वरूप, कांग्रेस से सुबोध शर्मा और ओवैसी की AIMIM से इंतेजार अंसारी मैदान में है।
समाजवादी पार्टी से चुनाव का टिकट मांग रहे बंटी के बड़े भाई गौरव स्वरूप और ब्राह्मïण नेता राकेश शर्मा को भले ही विरासत की सियासत कर रहे सौरभ स्वरूप ने टिकट की रेस में पीछे छोड़ दिया हो, लेकिन उनकी आगे की राह अभी भी आसान नहीं है।
कयास लगाए जा रहे हैं कि राकेश शर्मा का टिकट काटने की वजह से ब्राह्मण समाज गठबंधन से खासा नाराज़ है और ज्यादातर ब्राह्मण समाज के लोगों का समर्थन कांग्रेस प्रत्याशी सुबोध शर्मा को मिल रहा है। गौरतलब यह भी है कि राकेश शर्मा ने टिकट कटने के बाद से भले ही अपना समर्थन गठबंधन के प्रत्याशी सौरभ उर्फ बंटी को दे दिया हो, लेकिन जब सौरभ नामांकन करने पहुंचे थे तब भी लोगों ने इस बात पर चर्चा की थी, कि राकेश शर्मा व सौरभ के बड़े भाई गौरव स्वरूप साथ में क्यों नहीं पहुंचे? चर्चाएं यह भी हैं कि सौरभ स्वरूप के लिए राकेश शर्मा पूर्ण रूप से प्रचार प्रसार में हिस्सा लेते नजर नहीं आ रहे हैं, और सौरभ स्वरूप द्वारा कराए जा रहे प्रोग्रामों में भी राकेश शर्मा साथ नजर नहीं आ रहे हैं।
आपको बता दें राकेश शर्मा का टिकट काटकर गठबंधन से जब सौरव स्वरूप का टिकट फाइनल किया गया था तब भी सौरभ स्वरूप के विरोध में शहर के कई हिस्सों में उनका पुतला फूंक कर विरोध जताया गया था।


बता दें, सदर विधानसभा गठबंधन प्रत्याशी सौरभ स्वरूप का चुनाव में नया चेहरा है, जिनका मुकाबला भाजपा के एक्टिव व फ़ास्ट नेता कपिल देव अग्रवाल से माना जा रहा है। मंत्री कपिल देव की लोकप्रियता लोगो मे उनकी फुर्ती और सादगी के कारण बनी हुई है।
ऐसे तेज़तर्रार नेता के सामने एक नया चेहरा जो व्यापार के अलावा राजनीति में कोई मुकाम ही नहीं रखता। सपा-लोकदल गठबंधन द्वारा चुनाव में उतार देना, गठबंधन के लिए बड़ी हार का कारण बन सकता है। हारने की वजह यह भी है क्योकि स्वयं सौरभ के बड़े भाई गौरव स्वरूप टिकट कटने के बाद से लगातार नाखुश थे, जिसके चलते आज गौरव स्वरूप लखनऊ से भाजपा में शामिल हो गए हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सौरभ स्वरूप अपने बड़े भाई को मनाने में विफल रहे, जिससे वैश्य समाज भाजपा पर जाता दिख रहा है। सदर भाजपा प्रत्याशी कपिल देव ने सभी वैश्य समाज के नेताओ से मिलकर उन्हें भी अपने पक्ष में कर लिया है, जबकि सौरभ की अपने समाज के बड़े लीडर्स व व्यापारियों से भी दूरी देखी गई।


इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि गौरव की दूरियां सौरभ के सपने पर पानी फेर सकती है। इसके अलावा ब्राह्मण समाज राकेश शर्मा का टिकट न होने कारण नाराज़ हैं, जो सपा पर जाने वाले वोट थे, वो कांग्रेस पर ट्रांसफर हो सकते है क्योंकि गठबंधन ने ब्राहम्मण समाज के नेता बड़ा सम्मेलन करने के बावजूद भी टिकट नहीं दिया जबकि कांग्रेस ब्राहम्मण समाज से पंडित सुबोध शर्मा को उम्मीदवार बनाया है, इसलिए सपा को जाने वाली ब्राह्मण वोट भी कांग्रेस की तरफ जाती दिख रही है।
इसके अलावा दूसरी बड़ी मुश्किल सदर गठबंधन प्रत्याशी के लिए उस समय खड़ी हो गई जब पूर्व विधायक मिथलेश पाल ने सपा से ये कहकर इस्तीफा दे दिया था कि गठबंधन द्वारा अति पिछड़े समाज को नज़र अंदाज़ किया और मुझे नगर पालिका चैयरमेन के चुनाव में हरवाने में स्वरूप परिवार का हाथ था। मिली जानकारी के मुताबिक मिथलेश पाल ने भी लखनऊ में भाजपा का दामन थाम लिया है। इससे अति पिछडा समाज भी गठबन्धन प्रत्याशी से किनारा कर सकता है। कई अति पिछड़े समाज के लोगो से बात हुई तो उन्होंने बताया कि हमारे समाज की नेता मिथलेश पाल को जिस पार्टी में सम्मान न मिला हो, हम उसे वोट के जरिये जवाब देंगे। इसके अलावा खालापार, लद्दावाला, मलहूपुरा, मेहमूदनगर आदि जगहों पर हमारी टीम ने घूमकर सर्वे किया तो मुस्लिम समाज के लोग काफी संख्या में गठबंधन प्रत्याशी से नाराज़ दिखे। सबसे पहली नाराज़गी यह है जनपद कोई भी मुस्लिम टिकट नहीं दिया गया। दूसरा यह जब टिकट स्वरूप परिवार में ही देना था तो बदलने की आवश्यकता क्या पड़ी?
तीसरी सबसे बड़ी नाराज़गी यह थी कि सपा कार्यालय पर बंटी स्वरूप के किसी भी बैनर पर एक भी मुस्लिम नेता का फोटो नहीं है तथा बंटी स्वरूप को कोई नहीं जानता, लद्दावाला में तो कई जगहों पर साफ तौर लोगो ने अपने क्षेत्र के नेता AIMIM प्रत्याशी इंतज़ार को वोट देने की बात कहीं। दलितों ने खुलकर बसपा और असपा को वोट देने की बात कहीं। मुस्लिम समाज बंटता हुआ दिखा। वैश्य समाज कपिल के पक्ष में जाता दिखा। ब्राहम्मण समाज कांग्रेस और भाजपा की तरफ खिसकता नज़र आया। अति पिछड़ा समाज मिथलेश पाल के कारण नाराज़ नज़र आया। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर गठबंधन प्रत्याशी को वोट कौन दे रहा है?