हमारे ऋषि महर्षियों और पूर्वजों ने भेदभाव नहीं किया : मिथलेश नारायण

लखीमपुरखीरी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख मिथिलेश नारायण ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। हमारे ऋषि महर्षियों ने भेदभाव नहीं किया। हमारे धर्मग्रन्थों में कहीं भी भेदभाव नहीं है। हमारे महापुरूष भेदभाव नहीं करते। फिर भी यह बीमारी हमारे समाज में घर कर गयी। इसलिए हमको यह तय करना पड़ेगा कि हम अगर हिन्दू हैं तो भेदभाव त्यागना पड़ेगा।

वह महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर समरसता विभाग द्वारा लखीमपुरखीरी के सौभाग्य पैलेस में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि जिस देश में भगवान राम छुआछूत नहीं करते भगवान श्रीकृष्ण छुआछूत को नहीं मानते। उस देश में समर्थ हिन्दू और सशक्त हिन्दू को लांछित किया गया है। मिथिलेश नारायण ने कहा कि इतिहास परम्परा से हिन्दू समरस है। हमारे यहां जातियों के स्वाभिमान मिलते हैं अभिमान नहीं मिलते हैं। इसलिए मन से तमस निकालिए और प्रत्येक हिन्दू मेरा भाई है। इस भावना से काम करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि हमारी निष्क्रियता से हमारी हमारी उपेक्षा के कारण एक भी हिन्दू हमारे समाज से अलग न होने पाये। अन्यथा धर्मान्तरण से एक व्यक्ति कम नहीं होता है बल्कि एक व्यक्ति हमारा शत्रु बन जाता है।

मिथिलेश नारायण ने कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भूमि पूजन के लिए निमंत्रण देने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जब पंडित जवाहर लाल नेहरू के पास गये। नेहरू ने कहा कि महामना आप इसमें से हिन्दू शब्द हटा दीजिए। इसके स्थान पर हिन्दुस्तान लिख दो, आयावर्त लिख दो सनातन लिख दो लेकिन मालवीय ने नेहरू से कहा कि जितने शब्द आपने बताये वह सब शब्द हो सकते हैं, लेकिन वह हिन्दू के समानार्थी नहीं हो सकते। मालवीय नेहरू के सुझाव को नहीं माने। जब तक नेहरू जीवित रहे वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय नहीं आये।

इस मौके पर विभिन्न जातियों के 101 प्रतिनिधियों को सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम को वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र भदौरिया और सामाजिक समरसता विभाग के प्रमुख राजकिशोर ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वाल्मीकि सत्संग कमेटी के अध्यक्ष सुरेन्द्र शरण वाल्मीकि ने की।

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