हरियाणा में सत्ता परिवर्तन का दावा कर रही कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा से चुनावी जंग लड़ने के बजाय अपनी ही लड़ाई में उलझी हुई है। संगठन में बदलाव के बावजूद पार्टी गुटबाजी से बाहर नहीं निकल पाई। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा व चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का साथ देने को विरोधी धड़ा तैयार नहीं है। अब भी पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर, पूर्व सीएलपी किरण चौधरी व पूर्व मंत्री एवं प्रचार समिति के चेयरमैन कैप्टन अजय यादव की राहें जुदा हैं। कुलदीप बिश्नोई ने भी हुड्डा से नजदीकियां बढ़ाई हैं। एआईसीसी मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला तो हुड्डा और सैलजा के साथ एक मंच पर आ गए हैं, लेकिन बाकी नेता अभी दूरी बनाए हुए हैं।
तंवर पर हाईकमान की भी एक नहीं चल रही। आचार संहिता लगने से ठीक पहले बदले गए पूर्व प्रदेशाध्यक्ष तंवर सीधे-सीधे हुड्डा पर हमलावर हैं। वह सार्वजनिक मंचों से भी पूर्व सीएम पर कटाक्ष करने का कोई मौका नहीं चूक रहे, जिससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी तंवर को मनाने की कोशिश कर चुकी हैं, बावजूद इसके तंवर की नाराजगी बरकरार है।
अगर सभी बड़े नेता एकजुट न हुए तो कांग्रेस को भाजपा से लोहा लेना आसान नहीं होगा। किरण चौधरी भी हुड्डा की कई घोषणाओं को घोषणा पत्र में शामिल करने से इंकार कर चुकी हैं, जिसमें सबसे बड़ी घोषणा चार डिप्टी सीएम की है। इस पर भी हुड्डा और किरण में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
टिकट आवंटन पर भी हंगामे के आसार
कांग्रेस में टिकट आवंटन को लेकर भी बड़े नेताओं में घमासान की स्थिति होगी। हुड्डा 90 में से अधिक से अधिक टिकट अपने समर्थक नेताओं को बांटना चाहेंगे, जबकि तंवर, किरण, सुरजेवाला, बिश्नोई अपने समर्थकों के लिए जोर लगाएंगे। टिकट न मिलने पर विरोधी धड़े से जुड़े टिकट के इच्छुक नेता बगावत भी कर सकते हैं। तंवर खेमे में काफी नेता ऐसे हैं, जिन्होंने टिकट की आस लगाई हुई है। अब देखना यह है कि तंवर कितनों को टिकट दिला पाते हैं। प्रदेशाध्यक्ष सैलजा हालांकि, हुड्डा को यह कह चुकी हैं कि टिकटों का पैनल ऐसे तरीके से तैयार करें, जिस पर सबकी सहमति बनाई जा सके।
67 से 15 सीटों पर पहुंची पार्टी
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ग्राफ 2009 के बाद लगातार गिरा है। 2005 में कांग्रेस ने 67 सीटें जीती थीं। 2009 में कम होकर यह 40 रह गईं और 2014 में पार्टी मात्र 15 सीटों पर सिमटी। मुख्य विपक्षी दल बनने से भी पार्टी पिछड़ गई। इनेलो के टूटने के बाद मुख्य विपक्षी दल बनने का मौका मिला और चुनाव आचार संहिता लगने से चंद दिन पहले पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा नेता प्रतिपक्ष बने।