फरमान अब्बासी लेखक
कुछ लोग ऐसे होते है स्वयं अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार लेते है और फिर भी खुद को बुद्धिमान व काबिल कहलाते है, मगर हकीकत में वो लोग अपने वजूद, अपने सम्मान और अपनी छवि को अपने आप ही नेस्तनाबूद कर देते है। इन्हीं लोगो मे से एक सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी है, जिन्होंने 2012 में मुलायम सिंह के नेतृव में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कभी इंसान की परख की समझ नही रखी, हालत यह रही कि राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी अपने पिता मुलायम सिंह तक की अनदेखी की। बदले में क्या मिला, जिसका उदाहरण सबके सामने मौजूद है। पार्टी 2017 से अब तक गिरती ही चली गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के डर से कांग्रेस के साथ गठबन्धन किया मगर हासिल कुछ न हो सका। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबन्धन कर बेठे, और मायावती की हा में हा मिलाकर उनकी हर शर्त मानकर उनकी जी हुजूरी की। यहां तक कि मायावती ने कांग्रेस के साथ गठबन्धन नही होने दिया तो अखिलेश राज़ी हो गए। नतीज़ा ये निकला कि इस चुनाव में समाजवादी के कारण बसपा मज़बूत हो गई। जिसका एक भी सांसद नही था, उसके 12 हो गए और समाजवादी पार्टी पहले की तरह ही रही, अफसोस की बात तो ये है कि पार्टी के पिछली बार जीते हुए घर के सदस्य भी हार गए। फिर से कहता हूँ अखिलेश यादव फेल साबित हुए। मायावती में कई ऐसी खामियां रही थी, जिसके कारण से मुस्लिमो ने बसपा से किनारा कर लिया था, यही वजह थी बसपा का नामलेवा कोई नही रहा था, और इसी रास्ते पर अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी चलती दिख रही है। अखिलेश के जहन में कुछ इर्द गिर्द रहने वाले नेता मुस्लिमो की बात करने पर उन्हें पार्टी का नुकसान होने की बात भरते है। कुछ लोग सोशल साइट्स पर भी अखिलेश यादव के करीबी नेताओ को हार का कसूरवार ठहरा रहे है। ऐसा लगता है कि अखिलेश के सलाहकार ही ठीक नही, प्रवक्ता का जिम्मा ऐसे लोगो पर है जो टीवी डिबेट में मुह की खाते दिखाई देते है। इन सब बातों पर गौर करे तो साफ़ दिखाई देता है कि सपा में काबिलियत का नही हैशियत वाले व्यापारियों का बोलबाला है। अगले आर्टिकल में समाजवादी पार्टी के उन नेताओं के बारे में खुलासा करूंगा जो अखिलेश के इर्द गिर्द रहते है और उन पर बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां मौजूद है।
Farman Abbasi Writer