मुज़फ्फरनगर : अधिवक्ता तसलीम मलिक ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है की सरकार संतो को भिकारी न समझे एवं 500 रूपये पेंशन नहीं बल्कि न्यायोचित वेतन दे। जिससे की संत समाज अपने जीवन का निर्वाह कर सके। दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा मस्जिद के इमामो को दीये जा रहे वेतन के सम्बन्ध में बात करते हुए अधिवक्ता मलिक ने बताया की दिल्ली सरकार के अंतर्गत वक़्फ़ बोर्ड के अंतर्गत आने वाली मस्जिद के इमामो के वेतन को बढ़ाकर 18 हज़ार कर दिया गया है, और जो मस्जिदे वक़्फ़ बोर्ड के अंतर्गत नही आती है, उन इमामो को भी वक़्फ़ बोर्ड सैलरी देगा। ये एक सराहनीय कार्य है प्रत्येक समाज को चाहिए की वह धर्मगुरूओ का सम्मान करे एवं उनके लिए जीवन निर्वाह की व्यवस्था करे।
जिस प्रकार दिल्ली वक्फ बोर्ड अपनी संपत्तियों से आने वाले किराये से इमामो को जो 18 हजार रूपये प्रतिमाह वेतन दे रही है, ये वक़्फ़ यानि दान की प्रोपर्टी वो प्रोपर्टी है जो मुस्लिमो ने वक़्फ़ अर्थात दान दी है, जिसका सरकार एक बोर्ड बना कर रखरखाव कर रही है, उसी प्रकार अगर यूपी या केंद्र सरकार यदि संतो के प्रति गंभीर है,तो एक मंदिर बोर्ड बनाकर, मदिरो एवं माथो से आने वाली आय से साधू, संतो को कम से कम 18 हज़ार वेतन दे, जिससे की संत समाज अपना जीवन यापन सही से चला सके एवं जनता पर कर का भार भी न पड़े। यूपी में संतो को 500 सौ रुपये पेंशन दी जा रही हैं। इतनी महँगाई में 500 रूपये में क्या होता है ? महंगाई के इस दौर में 500 रूपये की पेंशन से किसी भी व्यक्ति को दो वक़्त का भोजन भी नहीं मिल सकता है।
अधिवक्ता मलिक ने मांग उठाई कि सरकार को चाहिए की वह धर्मगुरूओ को सम्मान पूर्वक उचित धनराशी वेतन के रूप में दे | धर्मगुरु समाज के मार्गदर्शक हैं जो की अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित करते हैं, उन्हें भिकारियों की तरह 500 रूपये प्रतिमाह देकर उनका अपमान न किया जाय।