चुनावी दिनों का एक एक दिन बीतने पर प्रत्याशियों की बेचैनी और हलचल भी पल पल बढ़ रही है। हर कोई जीत के लिए नए नए तरीके आज़मा रहे है। बीजेपी के बड़े नेता जनता से किये पिछली बार वादों को दरकिनार कर सरनेम के आधार पर आतंकवादी, और सराब, शराब में उलझाकर मुद्दों से जनता को भटका रहे है। वो बात अलग है कि इस बार उनकी ये साजिश नाकाम होती दिख रही है। जनता सब जानती है। फ़िरोज़ाबाद लोकसभा सीट की बात करे तो वहां की आम जनता की जुबान पर एक मात्र कंडीडेट का नाम सुनाई दे रहा है, फ़िरोज़ाबाद में गठबन्धन प्रत्याशी अक्षय यादव एक बार फिर से लोकसभा पहुंचते दिख रहे है, हालांकि बीजेपी व उसके सहयोगी दल अक्षय यादव को हराने के लिए हर सम्भव कोशिश कर रहे है। सूत्रों की माने तो बीजेपी ने क्षेत्र में कमजोर प्रत्याशी खड़ा कर प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल को समर्थन देने की साजिश रची है, शुरुआती दिनों में शिवपाल यादव में अपने भतीजे को हराने का जोश दिख रहा था, मगर क्षेत्र में घूमकर देखा तो अब उन्हें भी लगने लगा कि अक्षय यादव को हराना कोई आसान बात नही। ये काम लोहे के चने चबाना जैसा कहे तो कोई गलत नही होगा। हाल ही के दिनों में शिवपाल यादव का बयान सुना गया कि उनका मुकाबला बीजेपी से है गठबन्धन प्रत्याशी से नही। इससे साफ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि शिवपाल हिम्मत हार चुके। इसके बावजूद भी वो सपा प्रमुख महासचिव प्रोफेसर राम गोपाल यादव पर आरोप लगाने से बाज़ नही आये, बोले, बीजेपी को फायदा पहुंचाने का काम सपा महासचिव कर रहे है हम नही, जबकि ये किसी से ढका छिपा नही कि कौन किसको फायदा पहुंचाने का काम रहा है। बीजेपी सरकार ने फायदा पहुंचाने के बदले तोहफे में बंगला शिवपाल यादव को दिया, प्रोफेसर रामगोपाल यादव को नही, फिर भी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे हजम नही होता।
खेर कुछ भी हो अक्षय यादव भारी मतों से जीतते नज़र आ रहे है क्योंकि फ़िरोज़ाबाद की जनता सच जानती है। प्रसपा के भेष में बीजेपी समर्थक कहना कोई गलत नही होगा, इसलिए फ़िरोज़ाबाद में है यही शोर, अक्षय यादव जीत की ओर। इस बात को भी नकारा नही जा सकता कि जिस इंसान पर बीजेपी के अहसान हो तो वो फ़िरोज़ाबाद की जनता की आवाज़ क्या उठा पायेगा? और वैसे भी अक्षय यादव समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव व अखिलेश यादव के आदर्श चाचा प्रोफेसर राम गोपाल यादव के बेटे है। सपा महासचिव राज्यसभा में भी पूरे वजूद के साथ मुद्दे को उठाते है, जिनकी हर एक बात विपक्षी नेता भी चुप होकर सुनते है।
फरमान अब्बासी की कलम से