नई दिल्ली: 23 साल जेल में कड़ी मशक्कत से सजा झेलने वाले 6 मुस्लिम पुरुषों को अदालत ने बरी कर दिया है, राजस्थान उच्च न्यायालय ने सोमवार को दौसा ‘बम ब्लास्ट’ में अदालत ने, अभियोजन पक्ष द्वारा विस्फोट को अंजाम देने की साजिश के साथ’ किसी भी संबंध को साबित करने में विफल रहा है।
दौसा जिले के महवा थाना क्षेत्र के अंतर्गत सामलेटी के पास शाम 4 बजे आगरा-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर, एक राज्य द्वारा संचालित बस में विस्फोट होने से, जयपुर और भरतपुर के लोगों सहित 14 यात्रियों की जान चली गई, और 39 अन्य घायल हो गए थे।
पिछले 23 साल से जमानत नहीं मिलने पर, सभी लोग जेल में बंद थे और उन्हें 2014 में एक स्थानीय अदालत ने दोषी ठहराया, और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
सोमवार को मुक्त किए गए छह लोगों के नाम इस प्रकार हैं
जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के जावेद खान, अब्दुल गनी, लतीफ अहमद, मोहम्मद अली भट, मिर्जा निसार हुसैन (सभी श्रीनगर से) और उत्तर प्रदेश आगरा के निवासी राहुल बेग।
हालाँकि, ‘जस्टिस सबीना’ और ‘गोवर्धन बर्दर’ की खंडपीठ ने धमाके में शामिल होने के लिए, पप्पू उर्फ सलीम को पेशे से ‘डॉक्टर अब्दुल हमीद’ की मृत्युदंड और ‘आजीवन कारावास’ की सजा को बरकरार रखा।
“उन वर्षों को कौन वापस लाएगा जो जेल में बीते”
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्टों के मुताबिक अगर बात करें, पुरुषों ने मंगलवार को जेल से बाहर आने के बाद बताया कि, वे एक-दूसरे से अनजान थे, जब तक कि सीआईडी-CID ने उन्हें मामले में आरोपी नहीं बना दिया।
वहीँ गनी यह भी कहते हैं, “हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि, हम जिस दुनिया में कदम रख रहे हैं।” जब हम अंदर थे तो, हमने खोए हुए रिश्तेदारों को छोड़ दिया मेरी मां, पिता और दो चाचा गुजर गए, हम बरी हो चुके हैं, लेकिन उन वर्षों को कौन वापस’ लाएगा, ”बेग कहते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि, “उनकी पूरी जवानी बीत गई, हमारे माता-पिता भी मर गए, मेरे आँसू सूख गए, और मैं उनके लिए रोती-रोती बूढी हो गई। मेरा दिल कल से तेजी से धड़क रहा है और मुझे कुछ दिन दे दो, पहले उन्हें घर आने दो, मैं तुम्हें सब कुछ बता दूंगी।