23 मई को जनता का जनादेश देश के सामने आएगा लेकिन मतदान के आख़िरी दिन वोटिंग की प्रक्रिया ख़त्म होने के आधे घंटे के भीतर ही लगभग तमाम न्यूज़ चैनलों पर एग्ज़िट पोल दिखाए जाने लगे हैं.
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दरअसल आपको बता दें ये एग्ज़िट पोल आने वाले चुनावी नतीजों का एक अनुमान होता है और बताता है कि, मतदाताओं का रुझान किस पार्टी की ओर ज्यादा जा सकता है और न्यूज़ चैनल तमाम सर्वे एजेसियों के साथ मिलकर ये कराते हैं.
ये सर्वे (Exit poll) कई बार नतीजों से मेल खाते हैं तो कभी उनके बिल्कुल उलट होते हैं. ऐसे में हमने एग्ज़िट पोल की पूरी प्रक्रिया आपको समझाने की कोशिश की।
CSDS के निदेशक संजय कुमार एक न्यूज़ एजेंसी से कहते हैं कि, एग्ज़िट पोल को लेकर जो धारणा है वो है ये कि, मतदाता जो वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकलते हैं तो उनसे बात की जाती है और कई सवाल मतदाता से पूछे जाते हैं लेकिन उनमें सबसे अहम सवाल होता है कि, आपने वोट किसे दिया है. हज़ारों वोटर्स से इंटरव्यू करके आंकड़े जुटाए जाते हैं, इन आंकड़ों का विश्लेषण करके ये वोटिंग का अनुमान निकालते हैं, यानी ये पता लगाते हैं कि, इस पार्टी को कितने प्रतिशत वोटरों ने वोट किया है.
एग्ज़िट पोल करने, आंकड़े जुटाने और उन आंकड़ों को आप तक पहुँचाने में एक लंबी मेहनत और प्रक्रिया होती है.
ऐसा नहीं है कि हर बार एग्ज़िट पोल सही ही साबित हुए हैं और इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव.
बिहार में 2015 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद एग्ज़िट पोल में भाजपा के बंपर जीत का अनुमान लगाया गया था और पोलिंग एजेंसी चाणक्य ने भाजपा को 155 और महागठबंधन को महज 83 सीटों पर जीत की भविष्यवाणी की थी और वहीं नीलसन और सिसरो ने 100 सीटों पर भाजपा की जीत का अनुमान लगाया था, लेकिन जब नतीजे आये थे तो इसके बिल्कुल विपरीत रहे थे.
जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के महागठबंधन ने कुल 243 सीटों में से 178 पर जीत हासिल की थी और यह एक बड़ी जीत साबित हुई और साथ ही एग्ज़िट पोल और असल नतीजों में काफ़ी अंतर देखने को मिला था.
आख़िर एग्ज़िट पोल बड़े स्तर पर गलत कैसे हो जाते हैं?
इस सवाल पर संजय कुमार कहते हैं, ”एग्ज़िट पोल के फ़ेल होने का सबसे बेहतर उदाहरण है 2004 का लोकसभा चुनाव क्योंकि इस चुनाव में एग्ज़िट पोल के आंकड़े पूरी तरह से ग़लत साबित हुए थे. एग्ज़िट पोल में कहा जा रहा था कि, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनेगी और एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन बनकर उभरेगा, लेकिन 2004 के नतीजे हम सबको पता हैं, कांग्रेस की सीटें अधिक आईं और यूपीए सबसे बड़ा गठबंधन बना.” साथ ही 2015 के बिहार चुनाव में भी ज़्यादातर एग़्ज़िट पोल के अनुमान ग़लत साबित हुए थे.
”आप देखेंगे कि ज़्यादातर वहीं एग्ज़िट पोल फ़ेल हुए हैं, जिनमें बीजेपी की जीत का अनुमान लगाया जाता है, क्योंकि एग्ज़िट पोल में हम पोलिंग बूथ से निकल कर बाहर आए मतदाताओं से बात करते हैं और ऐसे में जो मतदाता मुखर होता है वो ज़्यादा बातें करता है”
आप देखेंगे कि भाजपा का मतदाता ज़्यादातर शहरी, ऊंचे तबके का, पढ़ा-लिखा, युवा होता हैं। तो आप देखेंगे कि सोशल कॉन्फ़िडेंस वाले लोग खुद आकर अपनी बात खुद रखते हैं और वहीं गरीब, अनपढ़ और कम अत्मविश्वास वाला मतदाता चुपचाप वोट देकर चला जाता है और उसका सर्वे करने वालों तक खुद जाने की संभावना कम होती है, ऐसे में सर्वे करने वालों इस बात का ख्याल रखना ज़रूरी होता है कि, वह हर तबके के मतदाताओं से बात करे और हर तबके को सर्वे में जगह दें.”
दूसरी ओर मतदान को गुप्तदान भी कहा जाता है, तो ऐसे में मतदाताओं से ये जान पाना कि, वो किसे वोट देंगे ये भी एक चुनौती होती है. कई बार वो सच बता रहे हैं या नहीं इस पर भी संशय होता है।
लेकिन संजय कुमार इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखते और वो कहते हैं कि, ज़्यादातर मतदाता सच बोलते हैं और ये हो सकता है कि, कोई मतदाता झूठ बोल दे, मज़ाक कर दे लेकिन मैं नहीं मानता कि जब किसी वोटर से हम जाकर बात करते हैं तो उसे झूठ बोलने में कोई आनंद आता है। मतदाता ने सच बोला या झूठ इसका फ़ैसला चुनाव नतीजों के बाद बिल्कुल साफ़ हो जाता है। साथ ही अगर आप पिछले 10-15 सालों के एग्ज़िट पोल को देखेंगे तो करीब-करीब सभी एग्ज़िट पोल के अनुमान नतीजों के आगे-पीछे ही आए है। तो ऐसे में प्रत्येक चुनाव परिणाम का सटीक अनुमान लगाना बेहद मुश्किल काम होता है.
संजय कुमार मानते हैं कि, कभी कभी एग्ज़िट पोल ग़लत होते हैं, लेकिन इन्हें ऐसे समझना चाहिए कि, अगर नतीजों में एग्जिट पोल की सीटें सटीक नहीं आईं लेकिन रुझान उसी ओर आया तो उसे ग़लत नहीं कहना चाहिए बल्कि वह भी सही एग्ज़िट पोल ही माना जाता है।