

हिंदी पत्रकारिता जगत के लिए आज काफी अहम दिन है. आज फिलीपीन्स की राजधानी मनीला में एनडीटीवी इंडिया प्राइम शो एंकर रवीश कुमार को रेमॉन मैगसेसे सम्मान से नवाजा गया हैं. हमनें दर्शक के रूप में देखा कि रविश उन लोगों की आवाज़ बनें, जिन लोगों की आवाज़ सत्ता के पास पहुँच नहीं पाती हैं. लगभग दो दशकों से रविश कुमार ने अलग- अलग प्रोग्राम के लिए नए आयाम स्थापित किए हैं. रविश की रिपोर्ट प्रोग्राम को लोगों के बीच काफी पसंद किया गया. ये प्रोग्राम भारत के गांव के हालात को देकर बनाया गया. रविश कुमार बताते हैं कि ” जब मैं रविश की रिपोर्ट के लिए जाता तो अखबार नहीं पढ़ता था”
इस प्रोग्राम के जरिए गांव की बदलते हालात तक पहुँचा गया. जब सत्ता पक्ष ने अपने प्रवक्ता को रविश कुमार के प्राइम शो में भेजने पर रोक लगा दी. तब उन्होंने पत्रकारिता टीवी को नई परिभाषा दे डाली. फिर रविश कुमार ने प्राइम टाइम शो में एजुकेशन सिस्टम पर सीरीज चलाई. जिसके चलते सरकार का ध्यान शिक्षा व्यवस्था की ओर गया. और कुछ सकारात्मक बदलाओ देखने को भी मिले.
सरकारी नौकरियों और इम्तिहानों के बहुत मामूली समझे जाने वाले मुद्दों को, शिक्षा और विश्वविद्यालयों के उपेक्षित परिसरों को उन्होंने प्राइम टाइम में लिया और लाखों-लाख छात्रों और नौजवानों की नई उम्मीद बन बैठे. जिस दौर में पूरी की पूरी टीवी पत्रकारिता तमाशे में बदल गई है- राष्ट्रवादी उन्माद के सामूहिक कोरस का नाम हो गई है, उस दौर में रवीश की शांत-संयत आवाज़ हिंदी पत्रकारिता को उनकी गरिमा लौटाती रही है. मनीला में रेमॉन मैगसेसे सम्मान से पहले अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि अब लोकतंत्र को नागरिक पत्रकार की बचाएंगे और वे ख़ुद ऐसे ही नागरिक पत्रकार की भूमिका में हैं.
फ्रीलांस पत्रकारिता से ही जीवनयापन कर रही कई महिला पत्रकार अपनी आवाज़ उठा रही हैं. जब कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन किया गया, पूरा मीडिया सरकार के साथ चला गया, लेकिन कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने सच दिखाने की हिम्मत की, और ट्रोलों की फौज का सामना किया. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि संगठनों और उनके नेताओं से कब सवाल किए जाएंगे?